सन्ता जी ने जवाब दिया- कुछ ख़ास नहीं, मै इसे एक साल पहनता हूँ। उसके बाद श्रीमती जी इसको काट कर पप्पू के साइज़ का बना देती है। फिर पप्पू इसे एक साल पहनता है। उसके बाद श्रीमती जी इसको काट छांट कर तकियों के कवर बना लेती है। फिर एक साल बाद उन कवर का झाडू पोछे में इस्तेमाल करते हैं।
अंग्रेज बोला- फिर फेंक देते होंगे?
सन्ता जी ने फिर कहा- नहीं-नहीं इसके बाद 6 महीने तक मैं इससे अपने जूते साफ़ करता हूँ और अगले 6 महीने तक बाइक का साइलेंसर चमकाता हूँ।
अंग्रेज बोला- फिर फेंक देते होंगे?
सन्ता जी ने फिर कहा- नहीं-नहीं इसके बाद 6 महीने तक मैं इससे अपने जूते साफ़ करता हूँ और अगले 6 महीने तक बाइक का साइलेंसर चमकाता हूँ।
बाद में मारडंडी खेल की हाथ से बनायीं जाने वाली गेंद में काम लेते हैं और अंत में कोयले की सिगडी (चूल्हा) सुलगाने के काम में लेते हैं और सिगड़ी की राख बर्तन मांजने के काम में लेते हैं।
इतना सुनते ही अंग्रेज रफू चक्कर हो गया।
किसी भी चीज का सम्पूर्ण इस्तेमाल कोई हम हिन्दुस्तानियों से सीखे।
हमें हिंदुस्तानी होने पर गर्व है।
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